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ओशो के अनुसार आस्तिकता और नास्तिकता का सच्चा अर्थ क्या है?

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ओशो के अनुसार, आस्तिकता और नास्तिकता का सच्चा अर्थ उन धारणाओं से बहुत अलग है जो आमतौर पर समाज में प्रचलित हैं। ओशो इस बात पर जोर देते हैं कि असली आस्तिकता के लिए नास्तिकता अत्यंत अनिवार्य है। यहाँ ओशो द्वारा बताए गए आस्तिकता और नास्तिकता के सच्चे अर्थ की व्याख्या दी गई है: झूठी आस्तिकता और नास्तिकता: ओशो कहते हैं कि जब हम किसी बच्चे को जिज्ञासा या प्रश्न उठने से पहले ही आस्तिक बना देते हैं, तो वह आस्तिकता झूठी, निर्वीर्य और निर्जीव होती है। यह सिर्फ खिलौनों की तरह कृष्ण, राम, बुद्ध या महावीर को पकड़ा देना है। यह थोपी हुई होती है और इसमें कोई प्राण नहीं होते। इसी तरह, सिखाई हुई नास्तिकता भी उतनी ही थोथी होती है जितनी सिखाई हुई आस्तिकता। रूस और चीन जैसे कम्युनिस्ट देशों में नास्तिकता थोपी जाती है, जो भारत के झूठे आस्तिकों जैसी ही झूठी है। हर थोपी हुई चीज़ झूठी हो जाती है। सच्ची या प्रामाणिक नास्तिकता: ओशो के अनुसार, सच्ची नास्तिकता वैसी ही स्वाभाविक रूप से पैदा होती है जैसे भूख, प्यास या नींद। नास्तिकता का ठीक अर्थ है: जिज्ञासा, जानने की आकांक्षा, अन्वेषण, खोज। यह एक यात्रा है, और प्रत्य...